रायपुर

भेदभाव न रखना ही गुरु घासीदास जी के प्रति सच्ची कृतज्ञता : रतनलाल डांगी

रायपुर। आईजी रतनलाल डांगी ने गुरु घासी दास जयंती पर कहा कि बाबा के संदेशों को जीवन में अनुसरण करें यहीं सबसे बड़ी और सच्ची कृतज्ञता होगी।

भगवान बुद्ध की परंपरा के महान संत, बुद्ध की तरह ही मानव की समानता यानी मनखे मनखे एक समान , नैतिक मूल्यों के समर्थक ,सामाजिक समानता, व्यक्ति की गरिमा के हिमायती एवं उनकी ही तरह धार्मिक आडंबरों, हिंसा, चोरी, नशा से दूर रहने की बात करने वाले महान संत गुरु घासीदास जयंती पर समस्त मानव प्राणियों को बहुत बहुत शुभकामनाएं।

आज पूरे देश प्रदेश में गुरु घासीदास बाबा की जयंती जोर शोर से मनाई जा रही है। गुरु घासीदास आधुनिक भारत के नैतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आध्यात्मिक जागरण के एक महान शिल्पी थे। आधुनिक युग में घसीदास एक सशक्त क्रांतिदर्शी और आध्यात्मिक गुरु थे। वे राजाराम मोहन राय से बहुत पहले नवजागरण का संदेश लेकर अवतरित हुए थे। महापुरुषों की जयंती इसलिए मनाई जाती है जिससे उनके द्वारा दिए गए संदेश हम आने वाले पीढ़ियों तक पहुंचा सकें। बाबा ने आज से लगभग ढाई सौ बरस पहले इस समाज के दबे कुचले वर्ग का मनोबल बढ़ाने, उनके आत्मसम्मान को जागृत करने, उसमें साहस भरने, संगठित रहने और विभिन्न प्रकार की सामाजिक बुराइयों से दूर रहने के संदेश दिए।

बाबा ने उस समय की सामाजिक विषमता को देखा जिसमें समाज का एक वर्ग हर स्थान पर भेदभाव का शिकार हो रहा था. उनके पास आर्थिक संसाधन भी नहीं थे. वह वर्ग जमींदार और मालगुजार की दया दृष्टि पर जी रहा था. जमींदारों के द्वारा न केवल आर्थिक शोषण किया जा रहा था बल्कि सामाजिक रुप से भी इस वर्ग के लोगों को एक तरह से बहिष्कृत कर रखा था. न ही उनके पास किसी भूमि का स्वामित्व था और न ही किसी प्रकार की उनके पास संपत्ति. किसी को पढ़ने लिखने का अधिकार भी नहीं था।

वह केवल मालगुजार के लिए एक मजदूर के रूप में था. उस समय छत्तीसगढ़ के क्षेत्र में मराठाओं का शासन था और मराठा शासन में पेशवाओं के द्वारा किस तरह की सामाजिक व्यवस्था पेशवाई साम्राज्य में थी सभी लोग अच्छे से जानते हैं. बाबा ने यह सब स्वयं देखा और भुगता भी था। गुरु घासीदास दलितों की हीन स्थिति से बहुत चिंतित थे. क्योंकि समय के प्रवाह से समाज में उनकी स्थिति अत्यधिक गर्हित हो चुकी थी. वे अज्ञानता, बीमारी, शोषण, मांसभक्षण, मदिरापान, अंधविश्वास जैसी नैतिक बुराइयों से जुड़ गये थे।

बाबा ने बुद्ध, कबीरदास, रविदास के द्वारा शुरू किए गए आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए शोषित वंचित समाज को जागरूक करने का बीड़ा उठाया था. गुरु घासीदास का मानना था कि हम दूसरों से अपना हक अधिकार मांगने से पहले हमको स्वयं में सुधार करने की जरूरत होती है।

क्योंकि उस समय की सामाजिक व्यवस्था के कारण इस वर्ग के लोग स्वयं भी कई प्रकार के दुर्गुणों और सामाजिक बुराइयों से ग्रसित थे। इसलिए बाबा ने समाज के लोगों में व्याप्त सामाजिक बुराई जैसे मूर्ति पूजा, आडम्बर, नशा-पान ,मांसाहार सेवन, पशु क्रूरता से दूर रहने की बात कही थी. बाबा ने आध्यात्मिक शक्ति के द्वारा ज्ञान प्राप्त किया और उस ज्ञान को समाज के बीच प्रचारित किया. बाबा का कहना था कि सभी मनुष्य एक समान है। कोई छोटा या बड़ा नहीं है।

ईश्वर ने सभी मानव को एक जैसा बनाया है. इसलिए जन्म के आधार पर ऊंच-नीच नहीं होना चाहिए. गुरु घासीदास का मानना था कि सत्य ही ईश्वर है। हमेशा व्यक्ति को सच ही बोलना चाहिए. उन्होंने समाज में यह संदेश भी दिया कि लोगों को किसी प्रकार का नशा नहीं करना चाहिए।

चोरी नहीं करना चाहिए. व्यभिचार से दूर रहना चाहिए. पशुओं के प्रति भी क्रूरता नहीं करनी चाहिए. बाबा ने समाज को आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत करने का अभियान भी छेड़ा। वो स्वयं एक कृषक के रूप में काम करते थे। खेती में ज्यादा से ज्यादा कैसे उत्पादन बढ़ाया जा सकता है, मिश्रित खेती के बारे में लोगों को जागरूक किया करते थे. उनका मानना था कि व्यक्ति आर्थिक रूप से मजबूत होने से ही स्वाभिमानी हो सकता है।

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